लोकसंवाद संवाददाता | समाज | बैशाख १७, २०७६
है प्रीत जहाँ की रीत सदा
फिल्म - पूरब और पश्चिम
संगीतकार- कल्याणजी(आनंदजी
गीतकार - इन्दीवर
गायक-महेंद्र कपूर
संस्कृत गायक - राजेश उपाध्याय
संस्कृत अनुवाद - बुद्धिप्रकाश जांगीड
रे प्रीतिरमुष्य रीतिस्सदा
यदा शून्यदानकृतं भारतेन
भारतेन मे रे भारतेन
जगता तदा गणनाधिगता
तारकीयभाषा भारतेन
जगते प्रथमेकवबोधिता
दत्तो न दशमलवो भारतेन
तत्चन्द्रं प्रति याने अशक्यता
धरतीचन्द्रीयदूरितायाः
अनुमानेऽपि चाशक्यता
सभ्यता यत्र पूर्वमायाता
प्रथमे जनितेह सर्वा कला
मे भारतन्तु भारतम् हि
अनुगामी यं संसारोऽचलत्
संसारोऽचलदग्रेकवर्धत
एवमग्रेकवर्धत वर्धमानोभवत्
भगवान् कुर्यादेवं वर्धेत
वर्धिते सुविकसितो भवेत्
रे प्रीतिरमुष्य रीतिस्सदा
हं गीततदीयं गायामि
भारतवासी च वर्तेऽहं
भारतगाथाः कथयामि
कृष्णगौरयोर्नहि भेदो
हृदयेन सर्वसंबन्ध इह
नहि ज्ञायते अस्माभिरन्यत्
ननु प्रेमभावनं जानीमः
यन्मेने पूर्वजगदखिलं
तत्पुनः , तत्पुनरावर्तेऽहं
भारतवासी ।।।।।।
स्वायत्तीकृताः कैः किमु देशास्
जितवन्तो मनांसि वयन्ननु
इहेदानीम् रामोऽस्ति नृषु
नारीषु चेदानीम् सीता
इयन्तः पावनलोका इह
अहं दिने –दिने शिरो नमामीह
भारतवासी ।।।।।
इयती ममता प्रतिसरितोऽपि
ताः मातृकनामाः कथ्यन्ते
इयानादरो मानव किमु
प्रस्तरोपि पूज्यो जायते
इह धरणावेव मे जनिरभवत्
कौटिल्यमहमुपगच्छामि
भारतवासी च वर्तेऽहं
भारतगाथाः कथयामि
मूल हिन्दी गीत
जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने
भारत ने मेरे भारत ने
दुनिया को तब गिनती आयी
तारों की भाषा भारत ने
दुनिया को पहले सिखलायी
देता ना दशमलव भारत तो
यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था
धरती और चाँद की दूरी का
अंदाज़ा लगाना मुश्किल था
सभ्यता जहाँ पहले आयी
पहले जनमी है जहाँ पे कला
अपना भारत वो भारत है
जिसके पीछे संसार चला
संसार चला और आगे बढ़ा
यूँ आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया
भगवान करे ये और बढ़े
बढ़ता ही रहे और फूले(फले
है प्रीत जहाँ की रीत सदा
मैं गीत वहाँ के गाता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ
भारत की बात सुनाता हूँ
काले(गोरे का भेद नहीं
हर दिल से हमारा नाता है
कुछ और न आता हो हमको
हमें प्यार निभाना आता है
जिसे मान चुकी सारी दुनिया
मैं बात वो ही दोहराता हूँ
भारत का रहने।।।
जीते हो किसी ने देश तो क्या
हमने तो दिलों को जीता है
जहाँ राम अभी तक है नर में
नारी में अभी तक सीता है
इतने पावन हैं लोग जहाँ
मैं नित(नित शीश झुकाता हूँ
भारत का रहने।।।
इतनी ममता नदियों को भी
जहाँ माता कह के बुलाते है
इतना आदर इन्सान तो क्या
पत्थर भी पूजे जातें है
इस धरती पे मैंने जनम लिया
ये सोच के मैं इतराता हूँ
भारत का रहने।।।
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